Friday, October 5, 2012

नाम



बद अच्छा बदनाम बुरा 
अपना तो हर काम बुरा 
किस्मत ही खुदा ने कुछ दी ऐसी 
जितना बदलो अपना तो हर नाम बुरा 

Tuesday, April 10, 2012

"मौसम"

वो अमावस की रातों में सियाह हुयी 
हरे दरख्तों की नर्म  टहनियां 
वो फिजां की आंधी में दफ्न  हुयी
फूलों की कोमल पंखुड़ियाँ
जो बचे उनको उम्मीद सुबह की 
रफ्ता रफ्ता गुज़ारो रातें 
अलाव की आग भी अब ठंडी हो चली है 
और दोहराने लगे हैं लब वो पुरानी बातें
सूख गयी हैं कपास की वो कोमल कलियाँ 
के हवाओं नें दस्तक  दी है दर पे 
कुछ उमड़े  हैं बादल इस तरफ 
लगा की  ज़मी की प्यास बुझेगी शायद 
वो गेहूं में बालियाँ आएँगी फिर से
सरसों वो सोने का सेहरा सजेगा सिर पे
 मौसम की भी फितरत इंसानी हो चली है 
यूँ हर वक़्त बदलना इसकी निशानी हो चली है 

Monday, April 9, 2012

"सबवे"

जनपथ की सड़क पे रीगल के पास
मैं, एक बोहोत पुराना "सबवे"
खाबों को देखा है बनते बिगडते
शीशों की इमारतें और लम्बी चौड़ी सड़कें 
कई देखे थे चेहरे जो अन्जाने
अब लगते हैं जाने पहचाने 
कई ज़िंदगियाँ देखी हैं लाशों में बदलते 
सिसकते, तड़पते, चिल्लाते और आवाज़ करते 
झाँका है जिस्मों को टैटुओं के बीच 
कभी ढूंढे हैं लत्ते उन्ही जिस्मों के बीच 
वक़्त के सहे हैं थपेड़े हज़ार 
अनगिनत सवाल लबों पे सवार 
पूंछता हूँ, कोई तो बताये मुझे 
ढूढ़ता हूँ, कोई तो दिखाए मुझे
ये दिल्ली का दिल कहाँ खो गया है 
वो जिंदा था, जो इन्सां कहाँ सो गया है...

Thursday, April 5, 2012

कवी




क्या मैं वही कवी हूँ 
जिसने लिखी थी एक कविता 
एक बेहेन की राखी थी जिसमे और माँ की ममता 
एक पिता के सपनों के कुछ उसमें शब्द बुने थे  
एक नानी के चेहरे की उसमें कुछ रेखाएं थीं  
एक प्यार की उसमें कुछ निःस्वार्थ आशाएं थीं 

क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता 
एक चित्र था कोई मित्र का कुछ धुंधला सा उसमें
एक मीत की उसमें दूर की कोई परछाई थी 
एक अधूरा गीत जिसे पूरा करना था 
उस गीत की उसमें कुछ निश्छल सी इक्षाएं थीं 

क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता 
मात्र भूमि की मिटटी की सोंधी खुशबू थी जिसमें 
सिद्धांतों की जिसमें कुछ छीटें आयीं थीं 
एक सरल से जीवन की जिसमे एक बात कही थी 
और रात जगाने वाले सपनों की तान छिड़ी थी 

हाँ मैं वही कवी हूँ 
जिसने लिखी थी एक कविता... 

Tuesday, April 3, 2012

The Good Old Days




A sweet wind reminded me of those good old days
When walking in the sun brings a happy face
Holding the hands and keeping a trace
Not to let go the time and give an embrace

That was the sweetest wine I ever had
Sat on the terrace in that shimmering moon
And the radio still played “the summer of 69”
Just longing this night should ends no soon

When everything came like a freebie in life
And you do whatever you decide
With all those pals and all those strides
Nothing even matters and I wonder

Now when I look back searching for that time I spent
With all those memories rushing from the vent
It’s the time that has changed a lot
With some smiles some tears it has brought

Saturday, March 31, 2012

एक पुरानी नज़्म...

हाथों में एक अजब सी जुंबिश थी
ऐसा लगा मानो छुआ किसी ने 
चोंका था मैं जब खोली थी मुट्ठी 
ओस की बूंदें और थोड़ी सी मिट्टी

पार्क की सीट पे पीठ टिका 
घंटों देखा करता था, उगते 
और ढलते सूरज को और 
पूंछा करता था, कुछ आग मिलेगी क्या मुझको 
एक दिया जलना है खाबों का

चाँद जलाता था फिर खाबों को रात में आकर 
लम्बी, तन्हा, वीरान पर 
शोर शराबों की रातों में आकर 
वो पुरानी मैली यादों को खंगाल के 
एक बोहोत पुरानी नज़्म सुना जाता था आकर 

वो रात जाने और सुबह आने का वक़्त मुश्किल 
होता था गुज़ारना
उम्मीद की चादर अब छोटी पडने लगी थी 
और पैर निकलने लगे थे बहार उसके... 

Monday, January 9, 2012

यादें 1...

कुछ तो बात थी उस रात में
जो हाथ तुम्हारा था मेरे हाथ में
कुछ अलग से जज़्बात 
कुछ मदहोश से लम्हात 
ख्वाब बेशुमार थे उस रात में

दूर की कोई सड़क
आते जाते अजनबियों से दूर 
इतने दूर की रहे न दर्मियाँ
कोई दूरी ...

वो चौराहे पे नजरे गड़ाए
वो सर्द सी रात में किसी अजनबी का इंतज़ार
पलकों ने आँखों को सोने न दिया 
ख्वाब भी कमबख्त पिरोनें न दिया
माना की गलती तो अश्कों की थी
जो नमी को आँखों से कम होने न दिया...