क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता
एक बेहेन की राखी थी जिसमे और माँ की ममता
एक पिता के सपनों के कुछ उसमें शब्द बुने थे
एक नानी के चेहरे की उसमें कुछ रेखाएं थीं
एक प्यार की उसमें कुछ निःस्वार्थ आशाएं थीं
क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता
एक चित्र था कोई मित्र का कुछ धुंधला सा उसमें
एक मीत की उसमें दूर की कोई परछाई थी
एक अधूरा गीत जिसे पूरा करना था
उस गीत की उसमें कुछ निश्छल सी इक्षाएं थीं
क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता
मात्र भूमि की मिटटी की सोंधी खुशबू थी जिसमें
सिद्धांतों की जिसमें कुछ छीटें आयीं थीं
एक सरल से जीवन की जिसमे एक बात कही थी
और रात जगाने वाले सपनों की तान छिड़ी थी
हाँ मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता...
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