Thursday, April 5, 2012

कवी




क्या मैं वही कवी हूँ 
जिसने लिखी थी एक कविता 
एक बेहेन की राखी थी जिसमे और माँ की ममता 
एक पिता के सपनों के कुछ उसमें शब्द बुने थे  
एक नानी के चेहरे की उसमें कुछ रेखाएं थीं  
एक प्यार की उसमें कुछ निःस्वार्थ आशाएं थीं 

क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता 
एक चित्र था कोई मित्र का कुछ धुंधला सा उसमें
एक मीत की उसमें दूर की कोई परछाई थी 
एक अधूरा गीत जिसे पूरा करना था 
उस गीत की उसमें कुछ निश्छल सी इक्षाएं थीं 

क्या मैं वही कवी हूँ
जिसने लिखी थी एक कविता 
मात्र भूमि की मिटटी की सोंधी खुशबू थी जिसमें 
सिद्धांतों की जिसमें कुछ छीटें आयीं थीं 
एक सरल से जीवन की जिसमे एक बात कही थी 
और रात जगाने वाले सपनों की तान छिड़ी थी 

हाँ मैं वही कवी हूँ 
जिसने लिखी थी एक कविता... 

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