ये दिल्ली है जनाब,
हाई हील सैंडल, होठों से धुआं
और आँखों में शराब,
दिल सुना था एक,
अफ़साने देखे थे अनेक,
यहाँ हर किस्सा लाजवाब,
शाम जाती है, एक रूहानी सुबह लाती है
अपने आगोश में सबको,
मदहोश कर जाती है
टूटते हैं सपनों के शीशे,
हर रोज़ किसी कोने में,
आहट भी ना उनकी,
दस्तक दे पाती है आवाज़,
ये दिल्ली है जनाब,
खिलते हैं कई गुल यहाँ,
एक ही डाली पे हर रोज़,
फिर खिज़ा में चुपचाप,
बदल जाते हैं वो अफरोज़
हर लम्हा यहाँ जीने का करता है आगाज़
ये दिल्ली है जनाब,
ये दिल्ली है जनाब.....