Tuesday, October 18, 2011

जिंदगी.2

खुशियाँ तो मुद्दतें हो गयीं, जो देखीं थी आख़िरी मर्तबा 
ख़्वाब भी अपने अब तो, सुनते हैं गैरों की ज़बां
बोझिल हैं आलम, हर लम्हा, हर समाँ 
ऐ वक़्त ले चल मुझे उस पहर में
जून की को तपती दोपहर में 
नानी के घर की छत पे घरोंदा बनाना       
बारिश के पानी में वो कागज़ की कश्ती बहाना
नन्हे से हाथों से वो जिंदगी बोना 
माँ के हाथों की मार, और मेरा वो रोना 
दोस्तों  के साथ खेली वो आँख मिचोली 
वो भोली शरारतें और वो अठखेली 
अब तो हसरत है एक लम्हा ही गुजरने पाए यूँ 
उस एक लम्हे में, मैं सैकड़ों जिंदगी जी लूँ.....

Saturday, October 15, 2011

जिंदगी.1


जिंदगी ये क्या है,सहरा, एक छलावा है 
ख़ावाब गुमसुम है,पराया हर नज़ारा  है
अब देर रात चौराहे पे भी, अकेलापन तलाशना पड़ता है 
ख़ुशी में भी, तन्हाई औ  ग़म ढूँढना पड़ता है 
सड़कें अब खाली नहीं होती 
गलियाँ अब रूमानी नहीं होती 
आबो हवा अब बदली बदली सी लगती है
जो था कभी,वो आज है नहीं 
उम्मीद है, की कमबख्त जाती नहीं 
उम्मीदों का दामन थामे बैठा हूँ 
कौन जाने, अपनों या बेगानों संग बैठा हूं
वक़्त ये क्या है,तृष्णा,नागवारr इशारा  है
जिंदगी ये क्या है,सहरा, एक छलावा है 
ख़ावाब गुमसुम है,पराया हर नज़ारा  है....

आप हो सामने...



आखिरी छंद हो,आप हों सामने 
काव्य की गंध हो, आप हो सामने 
देखता ही रहू आपको उम्र भर 
आँख जब बंद हो, आप हो सामने...

Thursday, October 13, 2011

वो डायरी....

वो डायरी याद है तुमको, प्यार से जो दी थी 
चौथे पन्ने पे उसके एक कविता लिखी थी 
नाम तुम्हारा लिखा था जो उसमें 
मुस्कुरा के वो फिर, तुमने पढ़ी थी 
रखी थी वो तुमने अपने तकिये  के नीचे 
आई थी खुशबू तुम्हारी जुल्फों की उसमें 
क्या वाकई वो डायरी याद है तुमको ?
याद है जब वापस तुमसे मैनें मांगी थी वो 
तुमनें भी बेगरज़ वापस कर दी थी वो 
वो दिन थे, और आज का लम्हा है शुमार 
खो गयी वो डायरी, खो गया है खुमार....  

Wednesday, October 12, 2011

किसको क्या बोलू...

किसको क्या बोलू, किस से करू गिला
जब वो मंज़र हमको मिल के भी ना मिला 
बैठे थे तन्हाई में, कुछ बात ना हो सकी
परछाई भी यू अपने साथ ना हो सकी
वो साथ जो गुज़री थी,वो बात जो निकली थी
भीड़ में खो गयी, शोर में सो गयी
आवाज़ देके यू कितने पहर बुलाया तुमको 
अपने हाथ से जो काजल लगाया तुमको 
वो नुक्कड़ की दुकान से पान जो खाया था 
तुम्हारे होंठों पे वो लाल रंग जो आया था
एक ख्वाब अंजाना सा जो दिल में समाया था 
उस चोट ने हकीकत से यू वाकिफ़ कराया था 
बस याद है जिंदा, बाकी कुछ न मिला 
किसको क्या बोलू, किस से करू गिला
जब वो मंज़र हमको मिल के भी न मिला 

आज भी बाकी है...





कल रात का सुरूर, आज भी बाकी है 
वो जो मिट गया था प्यार, आज भी बाकी है 
कागज़ पे लिखना, लिख के मिटा देना 
वो जो ऐसी थी आदत,आज भी बाकी है
है पता किसे ,किसकी इबादत थी सच्ची 
जाने कौन, किसकी ताकत थी कच्ची 
अपनी तो फितरत आवारा, आज भी बाकी है
मर्ज़ी नहीं, साये की अपने साथ होने की 
हो गयी है आदत, यू बारिशों में रोने की 
ग़म को सीने  की चाहत, आज भी बाकी है
कारवां रुकता नहीं, वक़्त भी थमता नहीं
ज़िन्दगी का सफ़र भी ऐसे कहीं रुकता नहीं 
शायद ज़िन्दगी जीने की चाहत,आज भी बाकी है...