Monday, January 9, 2012

यादें 1...

कुछ तो बात थी उस रात में
जो हाथ तुम्हारा था मेरे हाथ में
कुछ अलग से जज़्बात 
कुछ मदहोश से लम्हात 
ख्वाब बेशुमार थे उस रात में

दूर की कोई सड़क
आते जाते अजनबियों से दूर 
इतने दूर की रहे न दर्मियाँ
कोई दूरी ...

वो चौराहे पे नजरे गड़ाए
वो सर्द सी रात में किसी अजनबी का इंतज़ार
पलकों ने आँखों को सोने न दिया 
ख्वाब भी कमबख्त पिरोनें न दिया
माना की गलती तो अश्कों की थी
जो नमी को आँखों से कम होने न दिया...

1 comment:

  1. should have written more on this....journey was just getting started and u ended it.....

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